जावरा। श्मशान घाट का नाम सुनते ही इंसान के दिलोदिमाग में राख, धूल, टेढ़े-मेढे लोहे के एंगल, काला टीन या इधर-उधर बिखरे कपड़े आदि की तस्वीर छा जाती है। कुछ हद तक कईं स्थानों पर यही स्थिति देखने को मिलती है। जावरा के बहुत ही पुराने आनंदी हनुमान शांतिवन की दुर्दशा देख नगर के समाजसेवी सुभाष टुकडिय़ा का मन व्यथित हो उठा। उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने इसके कायाकल्प का बीढ़ा उठाया। कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों की तर्ज पर टुकड़िया ने करीबन 100 वर्ष पुराने इस श्मशान घाट को नया स्वरूप देने की मुहिम प्रारंभ की। फिर क्या था उनके इस छोटे से प्रयास को बड़ी सफलता मिली। अपना अधिक से अधिक समय उन्होंने इस शांतिवन को सजाने-सँवारने में लगा दिया। जिसके फलस्वरूप आज आनन्दी हनुमान मुक्तिधाम नए रूप में हमारे सामने है। ऐसे लाई टुकडिय़ा की पहल रंग –
समाजसेवी टुकडिय़ा की पहल कैसे रंग लाई, जरा उस पर भी प्रकाश डालते हैं। दरअसल किसी की भी मृत्यु की खबर मिलते ही सारे कामकाज छोड टुकडिय़ा श्मशान घाट पहुंच जाते हैं, जहाँ वे ही अंतिम संस्कार की लकडिय़ां शव दाह स्थल पर जमाते हैं। एक दिन यहाँ की अव्यवस्था को देख उनके मन में विचार आया कि जिस जगह से मृत व्यक्ति की अंतिम विदाई होती है, उसकी ऐसी हालत ? क्यों ना यहाँ पर जनसहयोग से सुविधाएं जुटाई जाए। नगर के मुख्य आनन्दी हनुमान मुक्ति धाम परिसर की कायाकल्प के लिए दानदाताओं ने भी दिल खोलकर दान दिया। शवदाह गृह का प्लेटफार्म लगभग 100 साल पुराना होकर रखरखाव की बाट जोह रहा था। सोश्यल मीडिया को बनाया माध्यम –
टुकडिय़ा ने सोशल मीडिया के माध्यम से आम लोगों से अपने परिजनों की स्मृति में इस पुनीत कार्य में सहयोग की अपील की। पोस्ट का असर हुआ और देखते ही देखते दानदाताओं द्वारा निर्माण कार्य में उपयोग होने वाली सामग्री देने का सिलसिला शुरू हो गया। इसके अलावा मुक्ति धाम हेतु 28 हजार का माइक सेट साईराज होटल द्वारा दिया गया। शुद्ध ठंडा जल की मशीन बरमेचा परिवार द्वारा भेंट की गई। जिसकी कीमत 28500 रुपये बताई जाती है। लकड़ी व कंडे की गाड़ी गुरु कृपा होटल द्वारा प्रदान की गई, जिसकी कीमत दस हजार रुपए है। विभिन्न दानदाताओं के सहयोग से परिसर में 22 छत पंखे लगाए गए। डेढ लाख में बना टीन शैड –
दाह संस्कार में आए लोगों को धूप व वर्षा से बचाव के लिए टीन शैड बनाया गया, जिस पर करीबन डेढ़ लाख रुपए खर्च हुए। इसके रंग-रोगन हेतु साफा वाला श्रीमती राजकुमारी इंदरमल दसेड़ा की तरफ से 37000 रुपये की राशि दान दी गई। अंतिम संस्कार स्थल पर लोहे की नई गार्डर लगाई गई। आसपास ईंट लगाकर इसे व्यवस्थित किया गया। नपा द्वारा मुक्ति धाम प्रांगण में नल लगाए गए तथा वाल पेंटिंग की गई। परिसर में जनसहयोग से संस्था 76 सीमेंट की कुर्सियां व 25 स्टील की कुर्सियां लगा चुकी है। सुभाष टुकडिय़ा ने बताया कि इस शांतिवन को हरा भरा बनाने की दिशा में प्रयास जारी है। शीघ्र ही परिसर में विभिन्न प्रजाति के पौधे रोपे जाएंगे। साथ ही समिति के धर्मचन्द चपडोद, जयेश चोरडिय़ा, जगदीश बामनिया, दशरथ कसानिया, अजित चत्तर, चन्द्रप्रकाश ओस्तवाल आदि की भूमिका भी सराहनीय रही।
Subscribe to Updates
Get the latest creative news from FooBar about art, design and business.