– पूर्यषण महापर्व के अंतिम दिन निकला वरघोड़ा
जावरा। प्रायश्चित का नाम ही क्षमा है। अपने पापों का जो प्रायश्चित करता है वही क्षमा की पात्रता को जागृत करता है। पर्यूषण पर्व का परिणाम क्षमा है। इन आठ दिनों मे दी गई जिनवाणीरूपी औषधि ही आपके जीवन को अमरत्व प्रदान करने वाली है। अत: अपने जीवन में क्षमा के गुणों को विकसित कर स्वयं को धन्य बनाये, औपचारिकता से नही, यथार्थ में क्षमा मांगे और क्षमा करें। क्षमा को अमरत्व की औषधि स्पष्ट करते हैं। क्षमा जीवन का अमृत है। क्षमा से बढकर इस संसार में मुक्त करने वाला कोई तप नही है। क्षमा जीवन मैत्री का प्रथम सोपान तथा आत्मशुद्धि का द्वार है जिसके द्वारा कटुता, वैमनस्य, राग, द्वेष मिटाकर आत्मा को शुद्ध,पवित्र, निर्मल और ज्योतिर्मय बनाया जा सकता है। जिसके मन में दया हो, करूणा हो, मैत्री हो, अनुकंपा हो, संवेदना हो वही क्षमा और व समत्व भाव की पात्रता रखता है। कहते हैं कि जो अमृत पी लेता है, वह अमर हो जाता है। अमरत्व को प्राप्त कर लेता है। लेकिन यह सम्भव नही है। क्योकि जिसने जन्म लिया है, वह मृत्यु का वरण निश्चित रूप से करता है। यही सत्य है कि जिसने क्षमा की अमृतरूपी औषधि का पान किया है वह निश्चित रूप से अमर हो जाता है और जन्म मरण के बंधनों से मुक्त हो जाता है। जिसकी आत्मा निर्मल हो जाती है, पवित्र हो जाती है, कशायमुक्त हो जाती है और जो क्षमा के गुणों को अपनाता है, आचरित करता है, जिनवाणी को श्रवण करता है, क्षमा का प्रभाव उसके जीवन को परिवर्तित कर देता है। अत: स्पष्ट है क्षमा ही अमरत्व की औषधि है और अमर बनने का मंत्र भी है हृदय से मांगी गई क्षमा ही अमृत है। पर्युषण महापर्व के आठवें व अन्तिम दिवस पर क्षमावाणी का महत्व विस्तार से समझाया। पर्यूषण के अंतिम दिन निकाला वरघोड़ा –
पर्यूषण पर्व के अंतिम दिवस पर परम्परा अनुसार चैत्य परिपाटी (वरघोडा) भी निकाला । दोपहर में 3 बजे से जैन मंदिर पौषधशाला पर श्रावकों का संवत्सरी प्रतिक्रमण प्रारम्भ हुआ। श्राविकाओं का प्रतिक्रमण जैन पंचायती नोहरा पर किया गया। प्रतिक्रमण के पश्चात वर्ष भर मे जाने अनजाने में हुई भूलों हेतु सभी ने एक दूसरे से क्षमा याचना की। 240 सिद्धितप आराधक एवं 170 से अधिक अठ्ठम तप व अन्य तप आराधकों को मुनिराज ने मांगलिक सुनाकर तप की अनुमोदना की। 8 व 9 सितम्बर को होने वाले विशाल आयोजन की तैयारियॉं युद्धस्तर पर चल रही हैं। सभी मिलकर शानदार व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दे रहे हैं। मुनिराज की धर्मसभा, तपस्वियों का पारणास्थल एवं आमंत्रित मेहमानों का भोजनस्थल सभी व्यवस्थाएं अलग अलग डोम मे की गई हैं। आयोजन मे पधारने वाले सभी भाग्यशालियों से श्रीसंघ व चातुर्मास समिति ने व्यवस्था मे सहयोग करने की विनती की है। आठवें बियासने के लाभार्थी स्व. संघमाता कमलाबाई फतेहलालजी नाहटा, पदम, कमल, चन्द्रपकाश, अतुल, श्रीकांत, दीपक, प्रणय, अमन नाहटा पंिरवार एवं स्व.मगनबाई राजमलजी लुक्कड की स्मृति में विजय, प्रदीप, प्रिंस, कल्प लुक्कड परिवार, स्वामी वात्सल्य के लाभार्थी संघमाता रोशनबाई जीतमलजी सुभाषचन्द्र सुरेशचन्द्र अशोककुमार, अनिलकुमार लुक्कड परिवार एवं स्व.मांगीलालजी कन्हैयालालजी ओस्तवाल, शैतानमल, मि_ूलाल, पारस, स्व.महावीर, शांतिलाल, संतोश, स्व.रूपेश, मंगलेष, निलय, आयुश, मोनिश, रिषित, भाविक, ओस्तवाल परिवार। संघ अध्यक्ष अशोक लुक्कड, सहमंत्री राजेश बरमेचा, कोषाध्यक्ष विनोद बरमेचा, चातुर्मास समिति अध्यक्ष धरमचंद चपडोद, मंत्री पारस ओस्तवाल, कोषाध्यक्ष अभय चोपडा, संयोजक अजय सकलेचा, प्रकाश चैरडिया, बाबूलाल खेमसरा, अनिल चैपडा, मुकेश मेहता, प्रकाश संघवी, चंदनमल कोठारी, महेन्द्र ओरा, राजेन्द्र राठोड, संदीप श्रीमाल, अर्पित चत्तर एडवोकेट, मनोज मेहता, सुभाष डूंगरवाल, संजय आचलिया, वीरेन्द्र खेमसरा नरेन्द्र कांठेड, मंगलेश मेहता, यश छाजेड, विजय लुक्कड, विशाल ओरा निष्चल पोखरना, संदीप संघवी, विपिन चैरडिया, पंकज लुक्कड, राहुल छाजेड, भावेश तांतेड, सौरभ मेहता, नीलेश कोठारी, ललित पोखरना, पन्ना लुक्कड, अक्षय धारीवाल, चिराग चैपडा, मनीश मेहता, विभोर जैन, महेन्द्र पोखरना, उमेश मांडोत, हंसमुख चत्तर, कांतिलाल औरा, अनिल चत्तर, के साथ ही श्रीसंघ के बडी संख्या मे श्रावक श्राविकाएं उपस्थित रहे। उक्त जानकारी मीडिया प्रभारी शिखर धारीवाल व वीरेन्द्र सेठिया ने दी।
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