– जापान के रैकोजी के बौद्ध मंदिर में स्वर्ण कलश में रखी हैं नेताजी की अस्थियां
– 23 जनवरी को नेताजी की जन्म जयंति से पहले भारत लाया जाए अस्थि कलश
– नेताजी के परपोते चन्द्रकुमार सहित उनके अनुयाईयों ने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मांग
शैलेन्द्रसिंह चौहान, चीफ एडिटर
जावरा। आजाद हिंद फौज के संस्थापक भारत भूमि के वीर सपूत देश पर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के दिवंगत होने के बाद आज उनकी अस्थियां जापान में पूजी जा रही हैं, जापान के रैकोजी के बौद्धमंदिर में नेताजी की अस्थिंया स्वर्ण कलश में सुरक्षित रखी गई हैं। इस मंदिर में प्रतिदिन नेताजी के अस्थि कलश की पूजा जापान के लोगों द्वारा की जाती हैं, लेकिन यह हम भारत वासियों का दुभागर््य हैं कि भारत भूमि पर जन्मे सूपत की अस्थिया तक हमारी सरकार बीते 79 सालों से भारत नहीं ला सकी हैं। नेताजी की जन्म जयंति से पूर्व उनके अस्थि कलश को राजकीय सम्मान के साथ भारत लाने की मांग नेताजी के परपोते चन्द्रकुमार बोस के साथ नेताजी के अनुयाईयों द्वारा भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से की हैं। जावरा निवासी तथा शासकीय कन्या महाविद्यालय रतलाम के सेवानिवृत प्राध्यापक डॉ मदनलाल गांगले ने बताया कि 23 जनवरी 1897 में जन्मे बाल्यकाल से ही मातृभूमि से जुड़े परतंत्र भारत को स्वतंत्रता दिलाने में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं। 4 जुलाई 1943 को जब सिंगापुर में नेताजाी को आजाद हिन्द संघ की अध्यक्षता सौंपी गई तो उन्होने आभार प्रदर्शित करते हुए कहा था कि, मेरी निष्ठा भारत वर्ष के लिए रहेगी मैं मातृभूमि के लिए जीऊगा और उसी के लिए मरुंगा और हुआ भी कुछ ऐसा ही, उनको उनकी मौत का एहसास पूर्व में ही हो गया था। 21 अगस्त 1945 को दिल्ली रेडियो से पूरी दुनिया को यह सुनने को मिला कि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को रात्रि के 9 बजे हारमोसा द्वीप के ताईहोकु स्थान पर वायुयान दुर्घटना में हो गई हैं। यदि नेताजी अपने जीवन के अधिकांश दिन आजाद भारत के साथ गुजारते तो देशवासियों को उनके साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त होता। आज नेताजी हमारे मध्य नहीं हैं, परंतु उनकी देश भक्ति और साहसीक यादे हमारे साथ हैं।
रैकोजी के बौद्ध मंदिर में रखा हैं कलश –
डॉ गांगले ने बताया कि यह बड़े ही दु:ख के साथ यह कहना पड़ रहा हैं कि जापान के टोकियों के सुगीनामी क्षैत्र के रेकोजी बौद्धमंदिर में हिफाजत के साथ नेताजी का अस्थि कलश न केवल विदेश की शोभा बढ़ा रहा हैं बल्कि अपनी मातृभूमि भारत आने के लिए भी आतुर हैं। जानकार यह आश्चर्य होता हैं कि जापानियों ने तकरीबन 79 साल से नेताजी की अस्थियों एवं राख को सोने के कलश में सजाकर मंदिर में रखा हैं। जिसकी नियमित रुप से पूजा पाठ की जाती हैं। जन्मजयंति से पहले भारत लाने की मांग –
डॉ गांगले ने बताया कि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के अनुयाईयों ने भारत सरकार को कई बार अनुरोध किया है कि नेताजी के अस्थि कलश को राजकीय सम्मान के साथ जापान से भारत लाया जाए एवं दिल्ली में एक स्मारक बनाकर उसमें रखा जाए ताकि भारतवासी उनकी देशभक्ति को जान सके। यह नेताजी के प्रति देशवासियों की सच्ची श्रृद्धांजली होगी साथ ही नेताजी के अनुयाईयों को संतुष्टी मिलेगी।
दिल्ली में बनाया जाए स्मारक और संग्रहालय –
नेताजी के अनुयाईयों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ ही केन्द्र की भाजपा सरकार से अनुरोध किया है कि नेताजी के अस्थि कलश को भारत लाकर दिल्ली में एक स्मारक बनाकर उसमें नेताजी के अस्थि कलश रखा जाए ताकि आम जनता उसका दर्शन कर स्वयं को गौरान्वित महसुस कर सके। स्मारक के साथ ही नेताजी के जीवन पर एक संग्रहालय का निर्माण भी करने की मांग की गई हैं।
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