– रतलाम के सेवानिवृत प्राध्यापक ने सीएम और मंत्री को भेजा पत्र
– पत्र में सात दिन में कार्योत्तर स्वीकृति प्रदान करने की रखी मांग
जावरा। मुख्यमंत्री के गृहनगर उज्जैन में स्थित क्षैत्रीय संचालक स्वास्थ सेवाओं के कार्यालय में किस तरह की लापरवाही बरती जा रही हैं और कोई भी काम समय पर नहीं हो पा रहा हैं, इसका जीवंत मामला हाल में प्रकाश में आया हैं, जबकि जावरा निवासी तथा रतलाम के शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सेवानिवृत प्राध्यापक के चिकित्सा देयकों की कार्योत्तर स्वीकृति बीते छ: माह से कार्यालय में लंबित पड़े रहने का मामला कई समाचार पत्रों में प्रमुखता से उठा था, बावजूद इसके अब तक मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसके चलते मजबुरन अब सेवानिवृत प्राध्यापक को क्षैत्रीय संचालक द्वारा बरती जा रही लापरवाही शिकायत प्रदेश के मुख्यमंत्री और चिकित्सा मंत्री से करना पड़ी हैं। जावरा निवासी एवं शासकीय कन्या स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय से सेवानिवृत हुए डॉ मदनलाल गांगले ने उनके दो चिकित्सा देयक बिलों की कार्योत्तर स्वीकृ़ति देने में उज्जैन के क्षैत्रीय संचालक स्वास्थ सेवाओं के अधिकारी एवं कर्मचारियों द्वारा लेट लतिफी को लेकर मुख्यमंत्री, स्वास्थ मंत्री मध्यप्रदेश शासन भोपाल अवगत करवाते हुए बताया है कि उनके सेवा काल के दौरान के दो मूल चिकित्सा देयक बिल जो कि 23090 और 38603 रुपए के बिलों को स्वयं जमा कर रसीद प्राप्त की थी। लेकिन छ: माह से अधिक का सयम बीत जाने के बाद भी कार्योत्तर स्वीकृति प्राप्त नहीं हुई हैं। कार्योत्तर स्वीकृति आदेश को लेकर नजर अंदाज किया जा रहा हैं। पैनल के समक्ष बिलों को नहंी रखा जाकर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया हैं।
पत्र भेजकर सात दिन में मांगा जवाब –
डॉ गांगले ने क्षैत्रीय संचालक स्वास्थ सेवाए उज्जैन को उनके चिकित्सा देयक बिलों की कार्योत्तर स्वीकृति आदेश हेतु रजिस्ट्री पत्र भेजा हैं, जिसमें पत्र प्राप्ती होने के सात दिवस के अंदर सूचित करने का निवेदन किया हैं। उनके दोनो चिकित्सा देयक बिलों की कार्योत्तर स्वीकृति आदेश के लिए कुछ किया जा रहा हैं कि नहीं अभी कुछ दिनों पहले ही समाचार पत्रों ने इस मुद्दे को प्राथमिकता के आधार पर उठाया था, लेकिन स्वास्थ सेवा अधिकारी और कर्मचारियों के कान पर जु तक नहीं रैंगी यह विभाग की लापरवाही और जवाबदेही न होने को दर्शाता हैं। ज्ञातव्य हैं कि इनकी ऐंज्योप्लास्टी मेंदांता हास्पीटल इंदौर में हुई थी।
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