जावरा। रहमत और जाहन्नुम से आजादी के मुकसद माह रमजान का आखरी आसरा (अंतिम दस दिन) सोमवार से प्रारंभ हो गए। इस आखरी दस दिन की इबादत में से एक इबादत ऐतकाफ भी है, जिसे पुरूष मस्जिदों में और औरतें अपने घरों में एकांत स्थान में बैठकर इबादत करते हैं। आसिफ अनवर (घड़ी वाले चाचा) नेे बताया कि रमजान माह के आखरी दस दिनों में किए जाने वाले एतकाफ को रमजान की 21 वे रोजे की पूर्व की रात्रि से अर्थात आखिरी असरे में ईद का चांद दिखने तक मस्जिद में रहने को ऐतकाफ कहते है। ऐतकाफ करने वाला इंसान स्वयं क सारी दुनिया और फ्रिकसे अलग कर तन-मन से रब की इबादत करता है।
ऐतकाफ उस मस्जिद में होता है जहां पांच वक्त की नमाज होती है –
आसीफ चाचा ने बताया कि नमाज, रोजा, कुरान की तिलावत और दीनी किताबों को कसरत से पढ़ अल्लाह रब्बुल इज्जत का जिक्र करना चाहिए। आखरी अशरे मेंं अल्लाह रब्बुल इज्जत ने शब.ए.कद्र भी अता फरमाई। यह शब जिस इंसान को नसीब हो जाए उसे हजार रातों से ज्यादा इबादत का शवाब हासिल होता है। इन रातों में कसरत के साथ कुरान की तिलावत, तस्बीह पढऩा और दुआ करने के साथ अपने गुनाहो से अस्तगफार करना चाहिए। ऐतकाफ हर उस मस्जिद में होता है जहां पंचवक्त नमाज जमात के साथ होती हो। अनवर ने बताया कि आज इक्कीस वां रोजा भी है। इस रोजे पर दस्तर खान पर फतेहा का महत्व है, इस दिन मौला अली शहर खुदा की फतेहा क ेलिए दस्तर खान लगाया जाता है। ये फतेहा हर मस्जिद और घरों में दिलाई जाती है।