जावरा। चातुर्मास केवल चार महिनों का समय नहीं है अपितु यह हमारे मानव भव को सार्थक करने के लिए ज्ञानी भगवन्तों द्वारा स्थापित की गई सर्वोत्तम व्यवस्था है।इन चार महिनों की अवधि में हम सब धर्म आराधना में जुड़ कर अपने कर्मों का क्षय कर सकते हैं।
यह बात छत्तीसगढ़ रत्न शिरोमणि महत्तरा पदविभूषिता प.पू.मनोहर श्री जी म.सा.की सुशिष्या जप साधना साधिका,मालव ज्योति प.पू.अमिपूर्णा श्रीजी ने जैन मंदिर पीपली बाजार स्थित खरतरगच्छ उपाश्रय पर आयोजित चातुर्मासिक व्याख्यान में कही। आपने कहा कि चातुर्मास का यह अवसर गुरुभगवन्तो के सानिध्य में आत्म स्वरूप को पहचानने के लिए हमे प्राप्त हुआ है। जैन धर्म में श्रावक के छत्तीस कर्तव्य बताये गए है, उनमें जिनवाणी का श्रवण करना महत्वपूर्ण बताया गया है। सामायिक लेकर व्याख्यान श्रवण करने से हम कर्मो के बन्धनों को काट सकते हैं। हम अपने जीवन में उत्कृष्ट चरित्र का पालन करते हुए, सत्य मार्ग पर चलते हुए, मानवता के गुणों को धारण करते हुए अपने इस मानव भव को सुधार कर आत्मकल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। इस मौके पर आजादसिंह ढड्ढा, रमेशचंद जैन, ललित जैन, मुकेश चंडालिया, संजय तलेरा, विजय बोरदिया, राजमल दख, विमल मेहता, आशीष धारीवाल, पंकज मेहता आदि सहित बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं उपस्थित रहे।
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