जावरा। 1500 वर्र्षो के संघर्षो के पश्चात भी भारत की मूल भावना लाखों वर्षो पश्चात भी विद्यमान है और उसका मूल विचार भी कायम है। यही भारतीय संस्कृति का उजला स्वरूप है, जिसने भारत की आत्मा को जिंदा रखा और आज उसका अभ्युदय विश्व कल्याण की भावना के साथ हो रहा है। उक्त विचार समग्र मालवा अटल ग्राम विकास सामाजिक संगठन के मालवा विचार मंथन के सात दिवसीय आयोजन के समापन अवसर पर श्रीराम विद्या मंदिर में भारत का सांस्कृतिक अभ्युदय विषय पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रतलाम विभाग संघ चालक तेजराम मागरोंदा ने व्यक्त किए। मांगरोदा ने कहा कि मंथन करने वाले सीमित लोग होते है और शासन तथा समाज उसे विस्तार प्रदान करता है। जनता के बीच में विचार जाना चाहिए, विचारों से ही देश चलता है। राष्ट्र है तो संस्कृति होती है, भारत को धर्म निरपेक्ष देश का जामा पहनाने का प्रयास किया गया लेकिन भारत का दर्शन और उसकी परंपराएं भारत के लाखों वर्र्षो की संस्कृति से जुड़ी हुई है। आगे कहा कि भारत में 2000 से अधिक वृत, त्योहार और उत्सव मनाए जाते है, जिसमे भारत की सनातन हिंदू संस्कृति के ही दर्शन होते है। राष्ट्र भूमि नहीं अपितु वहां के नागरिक होते है। जिस प्रकार परिवार का केंद्र मां होती है इसी प्रकार मातृभूमि भी पवित्र होती है। पश्चिम में राष्ट्र सेना, प्रशासन और राजा से जाना जाता है परंतु साझा विचारों की अनुभूति ही राष्ट्र का निर्माण करती है।
भारतीय संस्कृति विश्व में है अनूठी –
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार एवं लेखक रमेश मनोहरा ने करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति का लंबा इतिहास है, जब आदमी अपने आपकों भगवान समझने की भूल करता है तभी ईश्वर का अवतार होता है। भारतीय संस्कृति विश्व में अनूठी है जो समर्पण भाव का दर्शन कराती है। अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस मौके पर संस्था प्रमुख अभय कोठारी, कार्यक्रम संयोजक जगदीश उपमन्यु ने तिलक लगाकर एवं दुपट्टा पहनाकर अतिथियों का स्वागत किया। संचालन मनोहरसिंह चौहान एवं आभार महासचिव महेश शर्मा ने माना।
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